Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 25
अपडेट 25
जय अचानक तन्द्रा से बाहर आ गया जब होटेल के रूम का दरवाजा कोई जोरो शोरो से खटखटा रहा था। टीवी पे टेस्ट मेच देखते देखते उस की आंखे लग चुकी थी और वो अपने भुतकाल मे चला गया था। दरवाजे की आवाज से वो हडबडाकर खडा हुवा और दरवाजे के पास आया और की-होल से देखा तो खान की बीवी खडी थी। जय ने जल्दी दरवाजा खोल दिया और खान की बीवी ने अन्दर आकर दरवाजा बंध कर लिया और बुरखा उठाकर बोली,”जय भैया आप के भाइ की अभी अभी रिंग आयी है की आप को जल्दी ही यहा से निकलना होगा।“
जय,”क्यु ऐसा क्या हुवा?”
तभी खान की बीवी का मोबाइल खनका और उस ने फोन उठाकर जय को दिया और बोली,” लो इन से बात करो।“
जय पहलीबार मोबाइल का उपयोग कर रहा था और उस ने कान पर रखा क्युकी अभी तक उस ने सिर्फ फिल्मो मे मोबाइल फोन को देखा था।
The first mobile call was made by Chief Minister of
West Bengal from Calcutta (Kolkata now) while opening the joint venture of two
mobile group Indian Modi Group and Australian Giant Mobile TELSTRA on 31st July
1995. This was the first mobile operated in India. इसी महिने मे पहला सेल्युलर सर्विस हिन्दुस्तान मे एयरटेल ने भारती एयरटेल नाम की कम्पनी लोंच की थी। जय के जमाने मे STD
PCO हुवा करते थे।
जय को जब जैल हुइ तब तक उस के दोस्त के पास मोबाइल अभी नही पहुचा था। लेकिन जय के जैलवास के दौरान हिन्दुस्तान मे मोबाइल की संख्या बढती गइ और आज पहलीबार जय उसे इस्तेमाल कर रहा था।
जय,”हेल्लो, खान भाइ।“
खान,”जय, तुम जल्दी से होटेल खाली करो और नीकल जाओ। एक अमीर घराने की लडकी तुम्हारे पीछे है और अभी अभी मुजे घर से फोन आया था की वहा भी उस ने बडा हंगामा खडा किया है। शायद तुम्हारी जान को खतरा है।“
कुछ पल जय बोल नही सका फिर पुछा,”खान भाइ वो कौन थी?”
खान,” अरे भाइ, आन्धी की तरह आयी और तूफान की तरह मुजे गाली दे के चली गइ। वैसे भी मुजे आगाज था की कोइ ना कोइ तुम्हारे पिछे जरुर लगनेवाला है। अब जल्दी से तुम भागो और फोन तुम्हारी बहन को दो।“
जय ने फोन दे दिया, उस ने दो मिनिट बात कर के फिर बोली,” जय भैया जल्दी से ये बुरखा पहन लो और मै आप को बस स्टेन्ड तक छोड देती हु। आप कहा जाओगे?”
जय ने खान की बीवी को पुछा,”क्या बात है? कौन है वो लडकी? मै उस से मिलना चाहता हु।“
खान की बीवी बोली,”नही जय भैया, वो बडी खतरनाक है। आप के भाइ को भी धमकी देकर आयी है की वो ट्रान्सफर करवा देगी। जरुर कोइ बडी माया है। हमारे घर आकर सीधा मुज से पुछा की आप कहा हो। वरना वो हम पे पुलीस केस करेगी। जब मैने कहा की मै तो आप को जानती तक नही तो वो बोली उस ने हमदोनो को बुरखे मे पुलीसवान मे यहा आते हुवे देखा है। इतनी चालाक है वो। हमारा पिछा करते हुवे यहा तक आ पहुची है। अगर आप को जानती तो सीधा नही कह सकती थी। मैने उस का नाम पुछा तो तुम से मतलब कर के जगडा करने लगी। मुजे तो वो बडी भयानक मालुम पडती है।“
अब जय को भी बडा अजीब लगा और उस ने सोचा की यहा से नीकल जाना ही सही होगा। क्युकी आगे का कुछ भी उस ने नही सोचा था।“
जय ने देखा की टीवी मे भारत की दुसरी पारी खत्म हो चुकी है और बांग्लादेश की दुसरी पारी शुरु हो चुकी थी। दोपहर के 3.30 बजने को आये थी। भुख भी बहुत लगी थी। लेकिन वक़्त नही था। उस ने जल्दी ही बुरखा पहन लिया और खान की बीवी के साथ नीकल पडा। होटेल से नीकलते ही एक रिक्शो खडी थी उस मे बैठ गये दोनो और रिक्शो खानपुर से लेकर एलिसब्रिज हो के वीएस होस्पिटल रोड से लेकर पालडी विस्तार मे बूकिंग विंडो पर आयी। रास्ते मे ही जय ने सोच लिया था की कहा जाना है और जब खान की बीवी ने पुछा तो उस ने बता दिया की वो अहमदाबाद से अपने घर जुनागढ ही जायेगा। वैसे डाइरेक्ट बस भी थी लेकिन खान की बीवी ने दुसरा रास्ता चुना और उस ने अहमदाबाद से भावनगर (जो भारतीय पश्चिमी दिशा का आखरी शहर है) तक की टिकेट बुक करवाइ और पुरा रास्ता जय को समजाया की अहमदाबाद से ट्रावेल की बस से भावनगर 4
घंटे का रास्ता है और भावनगर से पिछे का रास्ता अपनाओगे तो घुमफिरकर जुनागढ जाये तो कोइ भी गुमराह हो जायेगा और जय को ज्यादा सोचने का समय मिल जायेगा। शायद वो लडकी जय का पिछा करे या तो उसे देख लिया हो तो वो जानती ही होगी की जय जुनागढ जरुर जायेगा तो वो पहले से ही तैयार होकर जुनागढ पहुच जायेगी। अगर पिछले रास्ते से जय दो दिन बाद जायेगा तो उसे कुछ नही मिलनेवाला और जय को कुछ और ज्यादा सोचने का समय मिल जायेगा। आगे अल्लाह की मरजी। ऐसा सोच के खान और उस की बीवी ने तो जय का रास्ता ऐसे अय कीया था: अहमदाबाद से भावनगर (4
घंटे) और वहा से भी जुनागढ 6 घंटे का डायरेक्ट रुट था। लेकिन जय को भावनगर से लम्बा सफर तय कर के दो दिन के बाद जुनागढ पहुचना था।
खान की बीवी ने जय को राजधानी ट्रावेल्स की बस मे बिठा दिया और हाथ मे 10
हजार रुपये थमा दिये। जय ने मना किया तो वो बोली,”मैने आप को भाइ माना है, वापस जरुर दे जाना। आप के हिन्दु धर्म मे तो बहन भाइ की कलाइ पे राखी बांधती है और भाइ पैसे या भेट देता है। लेकिन बहन का एक और भी धर्म है की वो अपने भाइ के लिये दुआ मांगती है। आज मै आप को ये रुपया देकर आप के लिये दुआ करती हु। क्युकी इस जमाने मे दुवाओ से ज्यादा पैसो की जरुरत पडती है। अल्लाह करे जब आप पे कोइ मुसिबात न हो, जरुर मेरे घर आना। खाना उधार रहा और ये रुपये भी मै उधार समजकर वापस ले लुंगी। कोइ बहस मत करना और जल्दी से नीकल जाइये।“
इतना कहकर वो वापस दुसरी रिक्शो मे बिना चेहरा मुडे नीकल गइ। जय इस औरत को देखता ही रह गया। समय की थपेटो ने कइ रिश्ते पिछे छोड दिये थे या तो तोड दिये थे। आज वही समय उस को नये रिश्ते सौप रहा था। और राजधानी ट्रावेल्स की ए.सी. सीटर बस नीकल पडी।
जय जब होटेल से नीकला था तो उन का ध्यान उस होटेल की दायी ओर खडी लक्जुरियस ओडी कार पे पडी थी। अंदर कोइ बैठा है और दाया हाथ बाहर रख एक सिग़रेट पी रहा है, ये भी उस ने देखा था। अगर उस लडकी का ध्यान इस तरफ होता या तो जय उस लडकी का चेहरा बेक व्यु मिरर से देखता, या कम से कम उस सिगरेट की ब्रांड भी वो देख लेता तो वो समज जाता की वो लडकी कौन थी। तो शायद अंजाम कुछ और होता, लेकिन किस्मत अभी भी उस के साथ खेल रही थी।
शाम को 4
बजकर 15 मिनिट पर खानपुर मे जैलर खान के घर के पास एक ओटो रिक्शा मे खान की बेगम उतरी और पैसे चुकाने के बाद उस अमिरजादी लडकी जो कार मे बैठी हुइ थी और अभी भी सिगरेट फुक रही थी उस के सामने गुरुर से देखा और वो लडकी समज गइ की पंछी हाथ से नीकल चुका है। वो दुसरे ही पल कार से उतरी और खान की बीवी के पास आयी और दो हाथ जोडकर बोली, लेकिन इस बार उस की आवाज मे गुस्सा नही दया की याचना थी,”प्लीज मुजे बता दिजीये उसे कहा छोडकर आयी है? वो बडी मुसिबत मे आ जायेगा, प्लीज।“
खान की बेगम बोल उठी,”नही अब तो आप मेरे शौहर का ट्रान्सफर करा ही दीजीये प्लीज।“
वो लडकी बेसहारा होकर होठ सख्ती मे बिडते हुये तेजी से अपनी कार मे घुसी और स्टार्ट कर एक एक ही जटके मे खानपुर रोड पर ले गइ। खानपुर से एलिसब्रिज रोड से उस ने वीएस होस्पिटल से लेकर पालडी और वहा से उल्टी दिशा मे वासना की ओर डाइरेक्ट दायी ओर मुडकर ओवरब्रिज से नीची उतरकर जोधपुर चार रस्ता से होकर इस्कोन चौकडी पहुची। अहमदाबाद से सौराष्ट्र की ओर जानेवाली कोइ भी सरकारी बस हो या प्राइवेट यहा इस्कोन
चौकडी पर पेसेंजर लेने रुकती ही है। इस लडकी को वहा पहुचने मे 20
मिनिट ही लगे थे। इस्कोन चौकडी पर कुछ लोग नये फ्लायओवर जो कुछ ही महीनो मे बन ने वाला था वहा खडे थे। लेकिन इस्कोन तक पहुचने से पहले उस लडकी को किइ जगह ट्राफिक से गुजरना पडा था। अहमदाबाद से बाहर नीकलते ही ये
फ्लायओवर सरखेज-गांधीनगर हाइ-वे के लिये बन रहा था। मतलब दायी और गांधीनगर और बायी
ओर सरखेज जो अहमदाबाद से पहला गाव और अहमदाबाद मे ही जुड गया था उस की और जाता है।
जब की इस्कोन से सीधा रास्ता एक्सप्रेस हाइ-वे की और जाता है जो राजकोट की ओर ले
जाता है।
किस्मत ने जय और उस लडकी को फिर से इस्कोन मे मिलाया। क्युकी राजधानी ट्रावेल्स की बस इस्कोन से सरखेज-गांधीनगर हाइ-वे पर बायी तरफ मुड के भावनगर जाती है। इसिलिये बस बायी और मुड के पेसेंजर्स ले रही थी और बराबर उस के पिछे ओडी कार आकर खडी रही। उस लडकी ने नीचे उतरकर बराबर जहा जय बैठा था उसी विंडो के नीचे आकर यहा वहा देखने लगी। 5
मिनिट के बाद उस ने एक पानी की बोटल ली और जल्दी से पिया। एक ट्रावेल एजन्ट वहा खडा था उसे पुछा,” भैया, अगर जुनागढ जाना हो तो कौन सा ट्रावेल्स है?”
वो बोला,”बहनजी, आज तो कोइ डाइरेक्ट ट्रावेल्स नही है, लेकिन आप राजकोट से जा सकती है। इस के लिये वोल्वो मे सीट है मेरे पास।“
वो लडकी,”और अहमदाबाद से राजकोट होते हुये जुनागढ का कौन सा रास्ता है?”
एजन्ट,”ये है ना नया एक्सप्रेस हाइ-वे जहा एस.टी. भी जाती है और ट्रावेल्स भी। देढ घंटे मे राजकोट से यहा पहुच जाती है। बोलिये कितनी टिकट बुक करु?”
“नो थेंक्स” इतना कहकर तेजी से वो लडकी कार मे बैठी और स्टार्ट की और इस्कोन से सीधा राजकोट की ओर, भावनगर की दिशा से दायी और नया एक्स्प्रेस हाइ-वे पर तेजी से मुड गइ।
हडबडाहट
कभी कभी जिन्दगी को पलट के रख देता है। अगर उस लडकी मे कुछ धैर्य होता और वहा खडी
एक एक बस चेक करती, अगर जय के विन्डो पर पर्दे न होते, अगर जय सोच मे डुबा न होता,
शायद कहानी कुछ और होती। शायद इस वक़्त इन दोनो का मिलना संभव नही था और वो लडकी
गान्धिनगर-सरखेज हाइ-वे से मुडकर अहमदाबाद-राजकोट एक्स्प्रेस हाइ-वे पर तेज रफ्तार
से चली गइ। जय की बस बायी ओर मुडी और वो लडकी सिधी चली गइ, दोनो एकदुसरे को क्रोस
कर के आगे का सफर तय करने लगे।
जय
की ए.सी. बस विडियो कोच था तो जैसे ही इस्कोन चौकडी से आगे बढी उस टी.वी. पर मुवी
शुरु कर दी गइ। सलमान खान और अजय देवगन की ‘लंडन ड्रीम्स’ मुवी को देखकर जय को याद आया की जैल जाने से
पहले उस ने आखरी मुवी भी सलमान खान की ही देखी थी ‘जब प्यार कीसी से होता है’। वो
फिल्म 1997 की सुपर ब्लोक बस्टर मुवी थी और ये मुवी मे जय खो गया। क्युकी इस फिल्म
मे भी दोस्तो की ही कहानी थी।
इस
तरफ वो लडकी अहमदाबाद-राजकोट एक्स्प्रेस हाइ-वे पर अपनी ओडी कार 150 कीमी/घंटे की
रफ्तार से चला रही थी। उसे जल्दी से जल्दी राजकोट पहुचना था। वो लाचार थी। कहा
कोन्टेक्ट करे जय का ? कैसे पता लगाये की जय कौन सी बस मे बैठा है। सिर्फ एक
अनुमान लगाया था की इसी रास्ते से वो जुनागढ जा सकता है। और अगर जय सीधा सीधा
जुनागढ जाता तो यही रास्ता सही होना था। लेकिन जैलर खान की बदौलत वो घुम फिर कर
जुनागढ पहुचनेवाला था। इधर वो लडकी इतनी स्पीड मे भी हर एक वाहन को अपनी नजरो से
चेक कर रही थी। कोइ भी बस हो या कार वो ओवरटेक करते समय एक बार जरुर देख लेती थी
की कही जय तो नही। शायद जय की जलक मिल जाये। क्युकी हर वाहन को खडा कर के वो चेक
भी तो नही कर सकती थी। उस के लिये गुजरात वैसे इतना पहचाना राज्य नही था लेकिन वो एक
बार जुनागढ जा चुकी थी और यहा आने से पहले, जय का पिछा करने से पहले उस ने पुरा
अभ्यास किया था की कैसे वो जय का पिछा करेगी। इसिलिये सिर्फ अनुमान पर उस ने
हिम्मत कर ली थी। उस ने ठान ली थी की कैसे भी हो लेकिन जय को जुनागढ पहुचने से
पहले बीच रास्ते मे ही पकडना है। लेकिन जैलर खान ने उस के इरादो पर पानी फेर दिया
था।
*****
बराबर उसी वक़्त स्वामी
ब्रह्मानंद के परम शिष्य ने गुजरात और महाराष्ट्र के बोर्डर स्थित सापुतारा
पहाडीयो के बीच पथ्थरो से बनी हुइ एक गुफा मे डेरा जमाया हुवा था। उस ने एक
इंस्ट्रुमेंन्टॅ नीकाला और उस से एक फोन कोल जोडा जो सीधा मुम्बइ की होटेल
गुलिस्ता मे आराम से सोइ हुइ उस एयरपोर्ट वाली फोरेनर लडकी के मोबाइल से कनेक्टॅ
हुवा। वो युवती दोपहर से सोयी हुइ थी। उसे भारत आये हुए चन्द घटॆ बीत चुके थे। उस
ने सुबह ही मेडिटेशन के दौरान ऐसा मेह्सुस किया था की उसे यथायोग्य मार्गदर्शन मील
जायेगा। इसिलिये बराबर धैर्य से वो इंतेजार कर रही थी।
शांताक्रुज एयरपोर्ट के पास
होटेल गुलिस्ता के कमरा नम्बर 412 मे सोयी हुइ उस लडकी के मोबाइल मे ‘ओह्ह्ह्ह्म’
रींगटोन से वो सहसा जाग गइ और उस ने अपना एल.जी. शाइन फोन उठाया,”हेल्लो’।
सामने से आवाज
आइ,"बेटी, एक लडका आज जैल से रिहा हुवा है। अहमदाबाद साबरमाती जैल से आज रिहा
होनेवाला था। चितशक्ती से ज्यादा ब्रह्मांड के वातावरन मे जाना जा सकता है, लेकिन
इस कंजक्टीव माहोल मे हमे परिश्रम करना ही होगा, क्युकी चितशक्ति से पिछा करना
काफी मुश्किल होगा।“
युवती,"लेकिन आप है
कौन? और ये सब मुजे क्यु बता रहे है? मै यहा अपनी बहन को ढुंढने आयी हु। मुजे क्या
मतलब है कीसी मुजरीम से?”
आवाज,"बेटी, ये लडका
ही शायद आप को अपनी बहन के पास पहुचायेगा और इतना ही नही वो लडका आप को अपनी ही
पहेचान बतायेगा। लेकिन उस से पहले आप को उसे ढुंढना ही पडेगा और मेरे पास लाना
है।“
युवती,"लेकिन मै ऐसा
क्यु करु? आप है कौन प्लीज आप की पहेचान पहले दीजीये।"
आवाज,"बेटी, मै स्वामी
ब्रह्मानंद का एक छोटा सा शिष्य हु। आप उस की साधिका है। मै ज्यादा फोन पे बात नही
कर सकता और उस लडके को कीसी तरह से मुज तक पहुचाना है, ये बात आप मान लो की स्वामी
ब्रहमानंद का आदेश है।“
वो लडकी कुछ गभराइ और फिर
बोली,"ठीक है क्या मै आप का नाम जान सकती हु? और मै उस लडके को कैसे
पहेचानुंगी ? वो मुजे कहा मिलेगा? मुजे क्या करना होगा?”
आवाज,"बेटी, चितशक्ति
से मै आप के साथ हु। मुजे जैसे जैसे पता चलेगा मै आप को सुचित करता रहुंगा। उस
लडके को पहेचान ने के लिये एक आदमी आप के पास आयेगा। वो ही ड्राइव करेगा। आप को
कार मे निकलना है। वो आज शाम को आप के पास आयेगा बस आगे की बात मै बाद मे करुंगा।“
और फोन डिसकनेक्टॅ हो गया।
उस लडकी की आखे चमक उठी। उस
ने तुरंत अपने मोबाइल से इनकमिंग कोल से आखरी नम्बर नीकाला और रीवर्स कोल किया।
कुछ ही पल मे सामने से एक लडकी की आवाज आइ।
इस युवती ने पुछा,"
हेल्लो, आप कौन बोल रही है प्लीज अभी अभी आप के मोबाइल से मुजे कोल आया था।“
सामने छोड पे लडकी बोली,”हेल्लो मेडम हु आर यु ? मेरा फोन तो पिछले आधे घंटे
से हेंग़ हो गया था। बिल्कुल टावर ही नही मिल रहा था।“
युवती,"व्होट? लेकिन
अभी अभी मुजे आप के ही मोबाइल से कोल आयी है।“
वो लडकी,”मेडम सोरी लेकिन
सही मे मेरे मोबाइल से मै पिछले आधे घंटॆ से अपने भैया को देल्ही फोन ट्राय कर रही
हु लेकिन पुरा का पुरा हेंग हो चुका था। यहा तो बिल्कुल कवरेज ही नही है। अभी आप
की कोल आयी तो ही टावर आया है।“
युवती,"ओके, सोरी टु
डिस्टर्ब यु।“ कहकर फोन काट दिया और अजीब नजरो से अपने मोबाइल की ओर देखने लगी।
उसे मेह्सुस हुवा की जिस कीसी को भी उस ने कोल किया था वो बीच रास्ते मे थी क्युकी
मोबाइल से आसपास के वाहनो की आवाज आ रही थी।
वो युवती निराश होकर बेड पर
बैठ गइ। ठंडी आहे उस ने नीकाली, अपनी दीदी को ढुंढने वो यहा आयी थी स्वामी ब्रह्मानंद
ने उसे लंडन की एक शिबिर के दौरान एक मुलाकात मे बताया था की जल्दी ही तुम अपनी
बहन से मिल पाओगी। बस एक कोल हिन्दुस्तान से आया की लंडॅन से जल्दी प्रस्थान करो
तो वो तुरंत ही चल पडी थी। लेकिन यहा आकर तो दुसरा काम उसे दिया गया था। स्वामी
ब्रह्मानंद तो हिमालय मे थे ऐसा उस ने ध्यान के दौरान मेहसुस किया था। लेकिन शायद
उस के दिमाग ने कीसी अज्ञात शक्तियो ने कब्जा कर लिया था और बार बार समय समय पर
उसे सुचनाए मिल रही थी। उसे कभी कभी सुबह ऐसा भी अनुभव होता था की शयद वो
हिप्नेटाइज्ड हो रही है। उस की आखो से आसु नीकल आये। बहुत मुश्किल मे उस ने अपनी
लाइफ बीताइ थी। उस की मा के बारे मे वो इतना जानती थी की उसे जन्म देते ही चल बसी
थी। जैसे बडी होती गइ, 20 साल की उम्र मे उसे एक अंजान सा खत आया और उसे पता चला
की उस की एक बडी बहन भी है, लेकिन कहा ढुंढती। शायद जिंदा भी है की मर गइ वो भी
उसे पता नही था। उस का बाप कौन है वो भी नही जानती थी। शायद उस की दीदी और अपनी
पहेचान के लिये ही वो भारत की ओर उस के कदम नीकल पडे थे। वैसे भी इंडिया उस की
मात्रुभूमि थी।
उस युवती ने जल्दी से आंखे
पोछकर खडी हुइ और फ्रेश हुइ, चाय मंगवाइ और सामान पेक कर ने के बाद उस आदमी का
इंतजार करने लगी।
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होटेल रेडरोज मे ठेहरे हुये उस बुजुर्ग को भी काउंटर से दुबारा मेसेज आया की
आप का फोन है इसिलिये वो तुरंत नीचे आया और फोन को रीसीव किया सामने से वही
स्वामीजी का शिष्य था,”आप तुरंत शांताक्रुज होटेल गुलिस्ता मे से बच्ची को लेकर जय
की ओर प्रस्थान कीजीये।“ और फोन डिसकनेक्टॅ हो गया।
फिर से काउंटॅर क्लर्क ने देखा की इनकमिंग कोल फ्लेश हो के गायब है। वो
बुजुर्ग जल्दी से अपनी रुम की ओर भागा काउनटर गर्ल ने इस बार होटेल के रुल्स को
तोडकर फोन के लास्ट इनकमिंग कोल को ट्रेस करने के लिये सामने से फोन लगाया। सामने
से एक मर्द की आवाज आइ। जब उस काउंटर गर्ल उस मर्द को पहेचान ने के इरादे से बताया
की वो खुद पुलिसवाली है तो वो मर्द ने उसे बताया की वो महाराष्ट्र का रहनेवाला है
और उस का मोबाइल भी पिछले 15 मिनिट से हेंग था। अचानक उस मर्द की बात चल रही थी और
फोन कट होने के बाद हेंग हो गया था। उस काउंटॅर गर्ल हैरत से फोन को देखने लगी।
उसे आज भी पता नही चला की कोल कहा से आ रही है।
15 मिनिटॅ के बाद वो बुजुर्ग होटॆल से चेक आउटॅ कर के टेक्षी मे बैठा और
शांताक्रुज की ओर बढने लगा। किंग सर्कल से शांताक्रुज ट्राफिक क्रोस कर के करीब एक
घंटॆ के बाद वो होटॆल गुलिस्ता मे पहुचा और उस फोरेनर लडकी को काउंटॅर से कोल कर
के बुलाया। वो आदमी तो गुंगा था लेकिन काउनटर गर्ल ने उस लडकी को नीचे बुला लिया।
वो युवती नीचे लाउन्ज मे आयी तब तक शाम के 6 बजे थे। होटेल के लाउन्ज मे खाली चैर
पे एक काला बुजुर्ग को उस ने बैठा हुवा देखा। बिल्कुल सफेद बाल, सफेद मुछ, थोडी सी
लाल आंखे, काला पेंट और ब्ल्यु टी-शर्ट इन कर के पहना हुवा था। उस ने इशारे से
युवती को बुलाया।
युवती को लगा की शायद उस ने इस आदमी को कही देखा है और वो भी लंडन मे ही देखा
है। वो तुरंत उस के पास आयी और बोली,"अंकल मैने आप को कही देखा है शायद।“
उस आदमी ने हल्के से मुस्कुराते हुये इशारा किया और बैठने को कहा। वो युवती अब
पहेचान गयी,”अरे अंकल आप तो वही हो ना जो स्वामी ब्रह्मानंद की शिबिर मे मुजे मिले
थे और....”
उस का वाक्य आधा ही रह गया क्युकी उस बुजुर्ग ने चुप रहने का इशारा किया और
कागज निकाल के पेन से लीखा की हमे यहा से जल्दी जाना है, मुंबइ से अहमदाबाद फ्लाइट
से।
युवती,"लेकिन मुजे बताया गया था की हमे कार मे जाना है।"
बुजुर्ग ने फिर लिखा कार से बहुत देर हो जायेगी, पहले प्लेन से गुजरात तक जाना
होगा और धीरे से मुस्कुराया।
वो लडकी उस की मुस्कुराहट देखकर खुश हो गइ और बोली,"ठीक है अंकल, लेकिन क्या
आप मुजे बताओगे की हो क्या रहा है हमारे साथ?”
बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुये जैसे कहा की जल्दबाजी न करो और जल्दी से चलो। आज
तक युवती को कभी भी कोइ ऐसे इन्सान से पाला नही पडा था जो उस के युवानी का फायदा
उठा सके। ये बुजुर्ग से वो पहले भी मिल चुकी थी, इस के साथ रह चुकी थी। वो जानती
थी की ये बुजुर्ग बोल नही पाते है। लेकिन बडे अच्छे दिल के इन्सान है। वैसे लंडन
मे तो स्वामी जी के कइ शिष्य थे लेकिन आज ये अकेले थे। न जाने क्या बात थी? दोनो
शांताक्रुज एयरपोर्ट पर आये और अहमदाबाद की फ्लाइट पकड ली।
लेकिन उन दोनो को पता नही था की जय तो कब का दुसरी यात्रा पर नीकल चुका है।
अहमदाबाद 26 जनवरी 2010 जब जय ट्रावेल कर रहा था तब ही जैलर खान घर पे आया, शाम को
6 बजे थे। घर मे आते ही उस ने अपनी बेगम को पुछा,”जय कु भेज दिया ना?”
बेगम,” क्या हुवा, शाम कु 6 बजे काय कु घर आये? वो तो चले गये, काय कु चिंता
करे हो?”
खान,” क्युकी इस जय के वास्ते आज दुसरी लडकी भी आयी है। इसे भी मैने भगा दिया।“
बेगम,”हाय अल्लाह, कौन है बेमुरव्वत?”
खान,” पता नही, ये दुसरी तो पहले से भी बडी चालबाज लगती थी। उसकु मैने बोले
दिया की जय दील्ली कु नीकल गया।“
बेगम,”लेकिन खोटा काय को बोला उस कु ?”
खान,”इ तेरे बस की बात नही, तु चिंता न को कर, भले दोनो ढुंढती फिरेगी जय कु।
तब तक जय कु कुछ सोचने का वक़्त मिल जायेगा। अपने को तो बराबर पैसे मिलते रहे थे जय
कु समालने के वास्ते। मै क्यु गद्दारी करु बराबर ना?”
बेगम,”इ पता चला की कौन पैसा भेजता था ?”
खान,”जय कु चिठ्ठी भी अलग अलग से आती थी, वैसे ये पैसे भी अलग अलग तरीकु से
आते थे, बस हमने अपना इमान समजकर जय कु बचा लिया, आगे अल्लाह की मरजी। ये पैसा भी
तेरे कु बच्चा नही होवे है इसी इलाज के लिये लिया है। वरना पैसा हराम है अपुन के
लिये।“ और वो नमाज अदा करने चला गया।
ये दुसरी लडकी थी ‘ग्रिष्मा कौल’ ध ग्रेट सी.बी.आइ. एजन्ट
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Rohan Nanda
22-Mar-2022 06:53 PM
Bahut khoob lekhan
Reply
Rohan Nanda
22-Mar-2022 06:52 PM
Bahut khoobsurat kahani likhi h aapne.
Reply
क्रिया क्रिया
19-Feb-2022 03:19 PM
Kahani kafi achchi h apki, maja aaya padhne me. Part break ho gya beech me ab age part kb atega.
Reply
PHOENIX
19-Feb-2022 05:56 PM
कोशिश करता हु की जल्दी ही भेजु लेकिन वक़्त बहुत कम रहता है। ये कहानी हिंग्लिश से हिन्दि मे कन्वर्ट करने मे बहुत समय लगता है।
Reply